भारत वर्ष में कई महान राजा हुए हैं जिनका ऐतिहासिक साहित्य में वर्णन मिलता हैं|
भारतीय इतिहास में ऐसे ही एक प्रतापी राजा हुए पुष्यमित्र शुंग, शुंग वंश की शुरूआत करने वाले पुष्यमित्र शुंग जन्म से एक ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय थे, इन्हें मौर्य वंश के आखिरी शासक राजा बृहद्रथ ने अपना सेनापति नियुक्त किया था|
हालांकि, पुष्यमित्र शुंग ने बृहद्रथ की हत्या कर मौर्य साम्राज्य का खात्मा कर भारत में दोबारा से वैदिक धर्म की स्थापना की थी.
आखिर क्यों और कैसे पुष्पमित्र शुंग ने मौर्य साम्राज्य का खात्मा किया? आइए, जानते हैं –
सम्राट अशोक के कलिंग विजय के बाद हृदय परिवर्तन से इन्होंने अपना पूरा जीवन बौद्ध धर्म के प्रचार व आचरण में लगा दिया |
अशोक द्वारा अपनाए गए बौद्ध धर्म के कारण पूरा मौर्य साम्राज्य हिंसा से दूर हो गया था, इसका फायदा उठाते हुए साम्राज्य के छोटे-छोटे राज्य अपने आपको स्वतंत्र बनाने की कोशिशों में लग गए|
इसी के फलस्वरूप, अशोक की मौत और वृहद्रथ के अंतिम मौर्य शासक बनने तक मौर्य साम्राज्य कमजोर हो गया था| वहीं, इस समय तक पूरा मगध साम्राज्य बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गया|
यकीन करना मुश्किल था, लेकिन जिस धरती ने सिकंदर और सैल्युकस जैसे योद्धाओं को पराजित किया, वह अब अपनी वीर प्रवत्ति खो चुकी थी, अब विदेशी ताकते भारत पर हावी होते जा रही थी, जैसे यूनानी सेनिको का राज्य में प्रवेश, कारण केवल एक था बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक नीतियां|
इस दौरान सेनापति पुष्यमित्र राजा की आज्ञा के बिना ही अपने सैनिकों समेत मठों की जांच करने चले गए| जहां जांच के दौरान मठों से ग्रीक सैनिक पकड़े गए| इन्हें देखते ही मौत के घाट उतार दिया गया|
इस कार्यवाही को देखने पर राजा द्वारा अपने सेनापति से कारण जानना चाहा, के राजा की आज्ञा बिना वह कैसे लोगो को मार सकता हैं |
राज्य की रक्षा के लिए किये गए कार्य पर सेनापति पुष्यमित्र को जनता व सेना का साथ मिला व राजा के साथ हुई झड़प में राजा की मृत्यु हो जाने पर सेनापति पुष्यमित्र को राजा बनाया गया, इस तरह से भारतीय इतिहास में किसी भी राज्य का पहला ब्राह्मण राज्य शुरू होता हैं| जिसका नाम शुंग वंश पड़ा |
origine of shunga
महाभाष्य में पतंजलि और पाणिनि की अष्टाध्यायी के अनुसार "पुष्यमित्र शुंग" भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण थे। इस समस्या के समाधान के रूप में जे॰सी॰ घोष ने उन्हें "द्वैयमुष्यायन" बताया जिसे ब्राह्मणों की एक द्वैत गोत्र माना जाता है। उनके अनुसार द्वैयमुष्यायन अथवा दैत गोत्र, दो अलग-अल्ग गोत्रों के मिश्रण से बनी ब्राह्मण गोत्र होती है अर्थात पिता और मात्रा की गोत्र (यहाँ भारद्वाज और कश्यप)। ऐसे ब्राह्मण अपनी पहचान के रूप में दोनों गोत्र रख सकते हैं| ये वंश का संबंध मध्य प्रदेश के उज्जैन से माना जाता हैं, जो मौर्य की सेवा में थे |
पुष्यमित्र का शासन प्रबन्ध
साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। बाद में राजधानी परिवर्तन कर विदिशा कर लिया, पुष्यमित्र प्राचीन मौर्य साम्राज्य के मध्यवर्ती भाग को सुरक्षित रख सकने में सफल रहा। पुष्यमित्र का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बरार तक तथा पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक फ़ैला हुआ था। दिव्यावदान और तारानाथ के अनुसार जालन्धर और स्यालकोट पर भी उसका अधिकार था। साम्राज्य के विभिन्न भागों में राजकुमार या राजकुल के लोगो को राज्यपाल नियुक्त करने की परम्परा चलती रही। पुष्यमित्र ने अपने पुत्रों को साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सह-शासक नियुक्त कर रखा था। और उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का उपराजा था। धनदेव कौशल का राज्यपाल था। राजकुमार जी सेना के संचालक भी थे। इस समय भी ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी।
दिखाए गए राज्य का विस्तार 185 BC का हैं 149 BC में इसका विस्तार पश्चिम व दक्षिण में दूर तक फेला था |
इस काल तक आते-आते मौर्यकालीन केन्द्रीय नियन्त्रण में शिथिलता आ गयी थी तथा सामंतीकरण की प्रवृत्ति सक्रिय होने लगी थीं।
शुंग वंश का शासन काल 185 BC से 149 BC तक रहा |
सनातन धर्म की पुनः स्थापना करने वाले महान पुष्यमित्र शुंग
उत्तर मौर्य काल में पुष्यमित्र ऐसे पहले राजा हुए जिन्होंने भारतीय सनातन धर्म के अनुसार कई कार्य किये जैसे अश्वमेघ यज्ञ, पुष्यमित्र के राज्य शासन पर आते ही एक और अंतिम समय में एक अश्वमेघ यज्ञ करवाया था, जो महर्षि पतंजलि द्वारा पूरा करवाया गया था |
इनके बारे में कहा जाता हैं, के सम्राट अशोक द्वारा नवाए गए 84 हज़ार स्तूप में से कुछ को
तुड़वाया भी था | जो इनकी महानता पर सवाल खड़ा करता हैं , हांलाकि पुष्यमित्र शुंग द्वारा कुछ बौद्ध स्तूपों का निर्माण कार्य भी सामने आता हैं जैसे - भरहुत स्तूप जो मध्यप्रदेश के सतना जिले में हैं |
व सांची स्तूप जो मध्यप्रदेश के रायसेन में स्थित हैं, जिसका निर्माण सम्राट अशोक द्वारा किया गया था, इसका जीर्णोद्धार करवाया |
चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद जिस शासन काल में सबसे ज्यादा यूनानियों का आक्रमण हुआ था वह पुष्यमित्र शुंग ही थे | पुष्यमित्र द्वारा महान यूनानी वंश डेमेट्रियस के राजा मिनांडर जिसे बौद्ध साहित्य में मिलिंद नाम से जाना गया , को भी पराजित किया था | मिनांडर के बारे में कहा जाता हैं के इसका साम्राज्य सिकंदर महान से भी अधिक विशाल हुआ करता था | पुष्यमित्र शुंग के रहते किसी भी भी विदेशी ताकत का भारत वर्ष में पैर पसारना नामुमकिन सा था, पुष्यमित्र शुंग ने कुल 36 सालो तक शासन किया व कुल 10 शासक हुए |
मनुस्मृति का वर्त्तमान स्वरुप की रचना भी इसी शुंग काल में हुई | भारत को ज्योतिष का ज्ञान व गांधार शैली का ज्ञान भी इसी काल में प्राप्त हुआ था|
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